हमारा देश त्योहारों और मेलों का देश है | इनका संबंध हमारे सभ्याचार, धार्मिक और ऐतिहासिक विरासत से जुड़ा हुआ है | यह भारत देश में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। दशहरा हिंदू धर्म का ऐतिहासिक त्योहार है जिसको बड़े ही हर्ष और उत्साह के साथ मनाया जाता है | दशहरा दीपावली से 20/21 दिन पहले आता है | यह आमतौर पर सितंबर – अक्टूबर के महीने में आता है। इस त्योहार का सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है। यह सभी के लिए खुशियां लेकर आता है । लोग अपने घरों में पूजा करते हैं, और इसे मनाने के लिए पटाखे भी खरीदते हैं | अगर आप “दशहरा / विजय दशमी पर निबंध ” लिखना चाहते है तो इस ब्लॉग पोस्ट को पढ़े।
नवरात्रि के पहले दिन से ही राम लीला का आयोजन किया जाता है और दशहरे के दिन रावण का पुतला जलाने के बाद से राम लीला की समाप्ति की जाती है | इस दिन द्वापर युग के भगवान श्री राम जी ने 10 मुँह वाले लंकापति रावण के ऊपर विजय प्राप्त की थी, इसलिए दशहरे को विजयदशमी भी कहा जाता है | इस पवित्र त्यौहार को असत्य पर सत्य पर विजय होने के रूप में भी जाना जाता है ।
दशहरा क्यों मनाया जाता है?

दशहरा दिवस को दुर्गा पूजा के नाम से भी मनाया जाता है । यह नवरात्रि के 9 दिन के अगले दिन 10वी पर आता है | इसका रिश्ता माता दुर्गा के साथ भी जुड़ा हुआ है | कहा जाता है की रावण का वद करने के लिए राम जी ने समुद्र तट पर देवी दुर्गा का 9 दिन मंथन किया था | इस मंथन के बाद 10वे दिन ही उन्हें विजय प्राप्त हुए थी | देवी दुर्गा ने राक्षस महिसासुर का वद भी 9 रात की तपस्या के बाद 10वे दिन ही किया था | इस तरह हम देखे तो दोनों घटनाये आपसे में मिलती जुलती हैं | तभी तो दशहरा को “बुराई पर अच्छाई की जीत” कहा जाता है |
दशहरा/विजयदशमी का इतिहास

महाराजा दशरथ की तीन रानियाँ थी और चार पुत्र थे | राम जी के विवाह पश्चात रानी कैकेयी की दासी मंथरा रानी कैकेयी के मन में राम जी के प्रति नकारात्मक बातें करती रहती थी । वह अयोध्या का राजकाज उनके बेटे भरत को दिलाना चाहती थी लेकिन श्री राम सभी के जेठ थे और सभी भाई उनसे काफी प्रेम भी करते थे। इसके चलते और श्री राम के अयोध्या में रहते भरत कदाचित भी सिंघासन पर नहीं बैठ सकते थे, इसीलिए मंथरा ने कैकेई को राम चंद्र जी को 14 वर्ष के वनवास को भेजने का सुझाव दिया। मंथरा की यह बातें सुनकर रानी कैकेयी राजा दशरथ से भरत को राज सिंहासन दिलाने और राम जी को 14 वर्ष को वनवास भेजने की मांग करती है (अपना वरदान मांगतीं है ) क्योंकि राजा दशरथ ने उन्हें एक बार वचन दिया था कि तुम जो भी वरदान मांगोगी मैं उसे पूरा करूँगां।
यह उस समय की बात है जब देवताओं पर असुरों ने अपना आक्रमण कर दिया था, उस आक्रमण से बचने के लिए इन्दर देवता ने राजा दशरथ से सहायता मांगी थी | अपने पति की रक्षा के लिए रानी कैकेयी उनकी सेना में सारथी बनकर शामिल हो गई थी | यूद्ध के मैदान जब राजा दशरथ के रथ के पहिये में से एक कील निकल गई और उनका रथ गिरने लगा था, तब रानी कैकेयी ने कील की जगह अपनी ऊँगली रखकर अपने पति के प्राणों की रक्षा की थी | इस बात से प्रसन्न हो कर राजा दशरथ ने अपनी पत्नी से 3 वरदान मांगने को कहा | परन्तु उन्होंने उस समय वर के लिए मना कर दिया और बोला की जब मुझे जरुरत होगी तब मैं आपसे वरदान मांग लूंगी | उस वरदान के बदले में रानी कैकेयी ने यह वरदान मांगे |
राम जी को 14 वर्ष का वनवास भेजने के लिए राजा दशरथ तैयार नहीं थे, और उन्हें रानी कैकेयी की यह बातें अच्छी नहीं लगी थी | उन्होंने रानी कैकेयी को समझाने का बड़ा प्रयत्न किया, परन्तु वह नहीं मानी | अंत में राजा दशरथ को अपने कैकेयी को दिए वचन को पूरा करने के लिए राम जी को वनवास भेजना पड़ा | अपने पिता का कहा मानकर राम जी 14 वर्ष का वनवास काटने के लिए घर से निकलने के लिए तैयार हो जाते हैं | उनके साथ उनकी पत्नी सीता जी और उनके भाई लक्ष्मण जी भी चल पड़ते है | राम जी के वनवास जाने से पूरी अयोध्या नगरी निराश हो जाती है | राम जी के वनवास के बाद राजा दशरथ भी उनके वियोग को सहन नहीं कर पाते हैं और उनकी मृत्यु हो जाती है |
जब राम जी अपनी पत्नी और भाई के साथ वनवास पर जाते है, तब उन्हें बहुत सारी जगह पर रहना पड़ा था | उन दिनों स्वयंवर चुनने की प्रथा थी | लंका के दरवेश रावण की बहन सरूपनखा अपने लिए स्वयंवर चुनने के लिए इधर – उधर घूम रही थी | घूमते – घूमते जब लक्ष्मण जी को देखतीं है तो लक्ष्मण जी उसे पसंद आ जाते हैं परन्तु लक्ष्मण जी उससे शादी करने को मना कर देते हैं | फिर वह राम जी के पास चली जाती है परन्तु वह भी उसके साथ शादी करने के लिए मना कर देते है, और बोलते की मैं अपनी पत्नी के साथ वनवास काटने आया हूँ | सूर्पनखा फिर से लक्ष्मण के पास जाती है, तब लक्ष्मण को गुस्सा आ जाता है, और वह गुस्से में उसके कान और नाक काट देता है | सरूपनखा का नाक बहुत सुन्दर हुआ करता था, जिसके कारण ही उसका नाम सरूपनखा रखा गया था | इस घटना के बाद जब वह अपने भाई रावण के पास रोती चिलाती हुई जाती है, तब रावण से अपनी बहन का यह दुःख देखा नहीं गया और गुस्से में आकर वह माता सीता जी को धोखे से उठा कर अपने साथ ले आया था |
माता सीता के अपहरण की बात जब राम जी को पता चलती है तब वह अपनी पत्नी को सुरक्षित लाने के लिए इधर – उधर घूमते हैं | फिर उन्हें बंदर कुल के भगवान हनुमान जी मिलते हैं | हनुमान जी अपनी बानर सेना के साथ मिलकर माता सीता को रावण के महल से छुड़वाने का प्रयत्न करते हैं | ऐसे चलते उन्हें रावण के भाई विभीषण भी मिल जाते हैं, जो की रावण से दुःखी थे उन्होंने भी राम जी का साथ देने का वचन किया | रावण की सेना के साथ मुकावला करने के लिए राम जी का साथ देने बहुत सारे लोग उनकी सेना में शामिल हो गए थे | चलते – चलते जब रास्ते में महासागर आ गया तब राम जी ने 30 मील से ज़्यादा लंबा पुल पथरो से ही बना ढाला था | जिस पत्थर के ऊपर राम लिखा हुआ होता था वह महासागर में तैरने लग जाता था | ऐसे करके राम जी की सेना लंका तक पहुंच पाई | कहते हैं कि रावण की सेना बहुत ही शक्तिशाली थी, फिर भी वह राम जी की सेना का मुकावला नहीं कर पाए थी |
युद्ध के समय रावण के भाई, कुंभकर्ण और बेटा मेघनाथ भी मारे जाते हैं | रावण ने घोर तपस्या करके शिवजी से 10 सिर का वरदान माँगा था, और उसकी नाभी में अमृत हुआ करता था | इस बात का पता रावण के भाई विभीषण को भी था | जितनी बार भी रावण का एक सर कटता था, उतनी बार उसका नया सर आ जाता था | इस बात से राम जी बड़े ही परेशांन थे | जब विभीषण ने राम जी को अमृत की बात बताई, तब राम जी रावण की नाभि में तीर चला देते हैं | इससे रावण जमीन पर गिर जाता है | तब जाकर रावण का वद होता है | तब से यह कहाबत चली है “घर का भेदी लंका ढाये” | रावण के अंत के पश्चात राम जी लंका का राजा विभीषण को बना देते है, और माता सीता को अपने साथ अयोध्या जाने के लिए निकल पड़ते हैं | राम जी के वनवास को पूरे 14 वर्ष हो जाते हैं | जैसे ही वह अयोध्या नगरी पहुंचते हैं, उनका अयोध्या वालों ने बड़ा सत्कार किया, और घर पर घी के दीये भी जलाये |
दशहरा का समारोह

दशहरा का त्योहार पूरे भारत में बड़े धूम–धाम और हर्षोल्लास से मनाया जाता है | जैसे राम जी और रावण का युद्ध 10 दिन तक रहा था वैसे ही उस चीज को नाटक के माध्यम से राजा महाराजाओं के जैसे वस्त्र पहनकर राम–लीला में प्रदर्शन प्रस्तुत किया जाता है | इन दिनों राम जी, सीता जी, लक्ष्मण जी और कई देवी–देवताओं की पूजा की जाती है, और उनकी झांकियां निकाली जाती है | रात के समय में ही राम–लीला का आयोयन किया जाता है, और इसे देखने के लिए लोग काफी मात्रा में एकत्रित होते हैं | राम–लीला के आखरी दिन (दशहरा के दिन) रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के विशाल आकार के पुतले जलाये जाते है | इन पुतलो में बहुत सारे पटाके भरे हुए होते हैं | राम–लीला में जो राम जी का रूप लेकर नाटक करता है वह अपने तीर से पहले कुंभकर्ण को फिर मेघनाद को और अंत में रावण को अपने तीर से जला देता है | यह आयोजन एक खुले मैदान में किया जाता है । इस कार्यक्रम को देखने के लिए न सिर्फ हिंदू धर्म के लोग बल्कि बाकी धर्मो के लोग भी शामिल होकर इस त्यौहार का आंनद प्राप्त करते हैं |
भारत के अन्य क्षेत्रों में दशहरा का मेला
उत्तर भारत में दशहरा का मेला – उत्तर भारत में आम तोर पर हिमाचल प्रदेश के कुल्लू शहर का दशहरा बहुत चर्चित है। अन्य क्षेत्रों के जैसे यहाँ भी नवरात्रि के दिनों से इस त्यौहार को मनाने की तैयारी शुरू हो जाती है। पहाड़ के लोग अपने ग्रामीण देवता की पूजा करते हैं और जुलूस निकालते है । मूर्ति को आकर्षक पालकी में बिठाकर नर्तक नटी नाच करते हैं। जुलूस को लेकर अपने क्षेत्रों में लेजाकर शहर की परिक्रमा करते हैं, इस तरीके से दशहरे के उत्सव का आरंभ यहाँ के लोग करते हैं | यह त्यौहार 7 दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें बच्चों के लिए झूलों का भी प्रबन्ध खास तरीके से होता है | ऐसे ही पंजाब में भी दशहरा बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है | नवरात्रि के दिनों में लोग उपवास रखकर पूजा करते हैं | इन दिनों खाने पीने का आयोजन विशेष रूप से किया जाता है। यहाँ पर खास तोर के मेले लगते हैं, रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ का पुतला जलाया जाता है |
गुजरात में दशहरा का मेला – गुजरात में दशहरा अलग ढंग से मनाया जाता है | नवरात्रि के दिनों में लोग शाम को सज–धज कर इकट्ठा होते हैं और गरबा करते हैं |
दक्षिण भारत में दशहरा का मेला – दक्षिण भारत में नवरात्रि के दिनों में लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा माता की पूजा करते हैं | इन दिनों बच्चे मेलों में जाकर आंनद उठाते हैं |
उपसंहार
आख़िरकार, दशहरा हिंदू धर्म के लिए बहुत महत्वपूर्ण है | अधिकतम धर्मों के लोग दशहरा का आयोजन देखने पहुंचते हैं | यह आपसी प्यार और मुहबत को दर्शाता है | दशहरे से हमें यह शिक्षा मिलती है, कि अंत में विजय हमेशा सच्चाई की होती है | बुराई जितनी मर्ज़ी बलवान हो सच का कुछ भी बिगाड़ नहीं सकती | इसलिये हमें हमेशा सच्चे रास्ते पर चलना चाहिए | विजयदशमी के दिन हिंदू धर्म के लोग मंदिरों में पूजा–आराधना करते हैं | मेलों में घूमकर पुतलो के जलने का जशन देखते हैं |
अंत में, मैं आपसे एक विनती करना चाहता हूँ कि हम इस त्यौहार को खुशी से मनाये और वातावरण को प्रदूषित होने से बचाये | रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के बड़े आकर के पुतले जलाकर हम न सिर्फ वातावरण को प्रदूषित करते है, बल्कि इसमें हमारे बहुत सारे पैसों का भी नुकसान होता है | पुतले जलाने से कई बार ऐसे हादसे हो जाते हैं, जिनको भुलाया नहीं जाता | ऐसी ही एक घटना वर्ष 2018 में अमृतसर में घटी | पंजाब के अमृतसर शहर में लोग दशहरे के दिन रावण का दहन देखने के लिए अमृतसर के एक फाटक के पास एकत्रित हुए थे | तभी अचाकन से काफी तेजी से जालंधर से अमृतसर आने वाली रेलगाड़ी लोगों को काटती चली गई | पटरी पर खड़े 61 लोगों की जान चली गई, और 50 से अधिक लोग घायल हो गये | पटाखे इतनी जोर से चल रहे थे, की किसी भी व्यक्ति को रेलगाड़ी की आवाज तक सुनाई नहीं दी | हमें ऐसी घटनाओं से बचने की आवकश्यता है | हमें त्योहारों को अपनी सुरक्षता को देखते हुए ही मनाने की जरुरत है |
सारांश – दशहरा / विजय दशमी पर निबंध ( Summary Dussehra essay in Hindi )
हम यह आशा करते है की इस पोस्ट “दशहरा / विजय दशमी पर निबंध Dussehra essay in Hindi ” में आपको दशहरा / विजय दशमी के बारे में अच्छी जानकारी मिली होगी । चलो हम अब इसका सार जानने का प्रयास करते है।
- दशहरा दिवस को दुर्गा पूजा के नाम से भी मनाया जाता है ।
- यह नवरात्रि के 9 दिन के अगले दिन 10वी पर आता है |
- इस दिन श्री राम चन्द्र जी को रावण पर विजय प्राप्त हुई थी।
- यह दिवस दिवाली से २० (20 ) दिन पहले आता है।
- दशहरा का त्योहार पूरे भारत में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है |
- इन दिनों राम-लीला में प्रदर्शन प्रस्तुत किया जाता है।
- दशहरा के दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के विशाल आकार के पुतले जलाये जाते है |
- हिमाचल प्रदेश का कुल्लू दशहरा बहुत चर्चित है। यह दस दिन चलता है।
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